tag:blogger.com,1999:blog-16030068188320143482024-03-13T10:17:39.019+05:30प्रकाशसिंह राठौड़prakash pakhihttp://www.blogger.com/profile/02837166018856378026noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1603006818832014348.post-33099909622651142912010-11-23T07:12:00.001+05:302010-11-23T07:12:00.723+05:30इंस्टीटयुट फॉर प्यूर एंड अप्लाइड बाबागिर<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQxDDBdJN9PFdmgLRtwNsUcHU-H3LfVPrMl1ieXS5FelBIPxF9D" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQxDDBdJN9PFdmgLRtwNsUcHU-H3LfVPrMl1ieXS5FelBIPxF9D" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16px;"></span></div><h3 class="post-title entry-title" style="font: normal normal normal 22px/normal Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0.75em; position: relative;"><br />
</h3><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQlC7lnsmeviUIAoAbZeRfLsQFXOBzlQD3ZWr8GFmqCJ0gj25pyuLof91U" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQlC7lnsmeviUIAoAbZeRfLsQFXOBzlQD3ZWr8GFmqCJ0gj25pyuLof91U" /></a></div><h3 class="post-title entry-title" style="font: normal normal normal 22px/normal Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0.75em; position: relative;"> </h3><div class="post-header" style="font-size: 11px; line-height: 1.6; margin-bottom: 1.5em; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div class="post-header-line-1"></div></div><div class="post-body entry-content" style="font-size: 13px; line-height: 1.4; position: relative; width: 490px;"><span style="font-size: 17px;">संस्थान के विशाल एवं हरे भरे केम्पस में बनी सीमेंट की शानदार सड़क पर रेंगती हुई एक स्कोडा ओक्टाविया कार एडम बिल्डिंग के गेट पर रुकती है।प्रकृति द्वारा प्रदत्त शकल के अतिरिक्त अन्य प्रयुक्त सहायक सामग्री से सज्जन दिखने का प्रयास करते मि।कबाड़वाला अपने सुमनोहर वस्त्र अमनोहर आनन पुत्र के साथ कार से बाहर निकलते है. इन्क्वारी काउंटर पर बैठी लड़की को पहले घूरने और बाद में पूछने पर उन्हें एडमिशन खंड का रास्ता दिखाया गया.कुछ देर बाद पिता पुत्र वहां पहुंचते है जहाँ काउंसलिंग हो रही थी.यहाँ पर पहले से कुछ लोग दीवार के सहारे लगी कुर्सियों पर गोद में थैला या ब्रीफकेस लिए ऐसे बैठे थे जैसे की वे बैंक में पैसा जमा कराने के समय बैठते है.<br />
बारी आने पर दोनों उस बंद कमरे में प्रविष्ट होते है जहा पहले से तीन व्यक्ति जिनमे एक आकर्षक महिला थी,मेज के उस ओर बैठे थे।उनकी आँखों में गरिमामय लालच तैर रहा था। कमरे में एयर कंडिशनर की हवा से माहौल कुछ सहज हो रहा था।<br />
'आईए मि।कबाड़वाला...!बिराजिए,सर्व प्रथम हम आपको बधाई देना चाहेंगे कि आपका पुत्र देश भर के उन चंद स्टूडेंट्स में है जिन्होंने बाबागिरी के शानदार केरिएर के लिए रिटर्न एक्जाम में क्वालिफाय किया है।जैसा कि आप जानते है यहाँ मात्र ६० सीटें है।उसमे भी सरकारी नार्म्स और आरक्षण क्र बाद १२ सीटें मेनेजमेंट कोटे से शेष बचती है'।<br />
दोनों कुर्सी पर बैठ जाते है।साहबजादे द्वारा महिला बोर्ड मेंबर को आवश्यकता से अधिक घूरे जाने पर बाप द्वारा कोहनी ठूंस कर मर्यादा नियमो की जानकारी प्रदान की गई।<br />
'पर,मैं पहले बाबागिरी फील्ड के स्कोप के बारे में जानना चाहूंगा।'<br />
'सर,यह इंडस्ट्री आज की सबसे ग्रोइंग इंडस्ट्री है।जैसा कि आप जानते है हमारा संस्थान प्यूर एंड अप्लाइड बाबागिरी में विश्व प्रसिद्द है।और कई विश्व प्रसिद्द संस्थानों ने इसे मान्यता दे रखी है,शीघ्र ही हम विदेशों में अपनी ब्रांचेज खोलने वाले है...'<br />
'पर, इसमें इनवेस्टमेंट ......?'<br />
'देखिये,बाबागिरी के लिए आवश्यक सारे आस्पेक्ट्स हम कवर करते है।अप्लाइड बाबागिरी में मार्केटिंग के फील्ड में बड़ा स्कोप है।हमारे यहाँ इसकी दो सीटें मेनेजमेंट कोटे से उपलब्ध है।प्यूर बाबागिरी में मीडियामेनेजमेंट,पर्सनेलिटी डेवलपमेंट और कथावाचन में भी दो दो सीटें है।और हंड्रेड परसेंट प्लेसमेंट गारंटी है।बस १० से ३० लाख का वन टाइम इनवेस्टमेंट करना है।<br />
' रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट क्या रहता है......अनुमानित।'<br />
'सर,बेचलर डिग्री के बाद तीन साल तक कुल इनवेस्टमेंट का ४० प्रतिशत रिटर्न मिल जाता है।पांच साल बाद ब्रेक ईवन हो जाता है।और इसके बाद जिंदगी भर ७० से ८० प्रतिशत रिटर्न मिलता रहता है।और फिर पब्लिक रिलेशंस वगैरह बनते है वो अलग,बस यह आपके स्टुडेंट की योग्यता पर निर्भर कितने बडे अधिकारी और नेता आपके शिष्य बनते है।अभी पिछली अलुमनी समारोह में संत पापड दास पधारे थे...हमारे यहाँ के तीन साल पहले के ग्रजुएट है...मंत्री मंडल तक उनका प्रभाव है।'<br />
'योगा के क्षेत्र में एडमिशन नहीं मिल सकता....!'<br />
'सारी सर,इसमें तो एक भी सीट खाली नहीं है...मेनेजमेंट कोटे में तीन सीटें थी पर सी एम ओ से फोन आने के बाद अब बची नहीं।'<br />
'पापा,ट्रेंड तो योगा का चल रहा है ...'<br />
कबाड़वाला ने बोर्ड के सदस्यों की तरफ देखा,जो कृत्रिम असमर्थता जाहिर करते हुए इनकार में सर हिला रहे थे।<br />
'इसमें बोर्डिंग लोजिंग के चार्ज शामिल है...'<br />
'नहीं,नहीं सर!यह तो मेनेजमेंट सीट पे एडमिशन का चार्ज है जो चंदे के मे रूप लिया जायेगा ।हाँ,आयकर में छूट अवश्य मिलेगी॥बोर्डर्स चार्जेज अलग है।'<br />
'चलो ठीक है...योगा मे एडमिशन दिलवा दीजिये।'कबाड़वाला ने निर्णायक स्वर मे कहा।<br />
'सारी,सर..!'<br />
कबाड़वाला ने मुस्कराते हुए एक ब्रीफकेस,जिसमे सौ के नोटों के बण्डल थे खोल कर टेबल पर उनकी ओर सरका दिया और बोले,'ये पांच लाख है,चंदे से अलग.....!और भी कुछ हो तो बता दीजियेगा ।'<br />
थोडी देर बाद कबाड़वाला और उनके सुपुत्र वापसी की राह पर थे।<br />
कबाड़वाला के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी।<br />
उनके सुपुत्र महाशय रंगीन छवियों पर नज़रें डालते हुए एकाग्रता का अभ्यास कर रहे थे</span></div>prakash pakhihttp://www.blogger.com/profile/02837166018856378026noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1603006818832014348.post-32983598592607957692010-11-20T07:12:00.002+05:302010-11-20T07:12:00.152+05:30तेजा बा की कुर्सी<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcR93mis1E7lMRY1tiEt-DyT3eV-SaQWf7VG0xh5kXCA3R1OqNZkGg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcR93mis1E7lMRY1tiEt-DyT3eV-SaQWf7VG0xh5kXCA3R1OqNZkGg" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSQBVYjFWPhN4hIcPAdw1JMG5JmrEWO8lfUrlhNaJ3ZpS0WT1OaIH54Ww2q" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSQBVYjFWPhN4hIcPAdw1JMG5JmrEWO8lfUrlhNaJ3ZpS0WT1OaIH54Ww2q" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 17px; line-height: 23px;">काफीदिनों से अपनी एम्प्लोय्बिलिटी अथवा रोजगार प्राप्त करने की क्षमता बढ़ाने की सोच रहा था।परन्तु रोजगार हमें पंचम वर्ण में शामिल जातियों की भांति अस्पृश्य मानते हुए हमारी छाया से भी सावधानी से दूरी बनाये हुए था.पिछले कई दिनों से हमारी बढ़ी हुई दाढी भी वह प्रभाव नहीं छोड़ रही थी की कोई हमें फोकट की चाय पिलादे.अस्तु,हमने उसे उखड वाने के लिए तेजा बा की सेवाए ली,कसबे में हमरे सिवाय केवल तेजा बा ही ऐसे व्यक्तित्व थे जो पैसे को हाथ का मैल समझते थे और इज्जत पर मर मिट सकते थे.हमारे पास पैसा तो था ही नहीं सो इज्जत के सिवाय भला किस पर मर मिटते.तेजा बा को जब अपने बहु बेटो ने रात दिन बेइज्जत करना जारी रखा तो वे अपनी एक मात्र जमा पूँजी इज्जत को लेकर फुटपाथ पर आगये .उनको अपनी परलोक गामी पत्नी के साथ दहेज़ में मिले काच से बेपनाह मोहब्बत थी.उस काच में हमें अपना चेहरा कभी आंशिक रूप से भी नजर नहीं आया परन्तु हमें पूरी सावधानी रखनी पड़ती थी की कम से का दाढी बनवाते वक्त हम उस काच की शान में कोई गुस्ताखी न बक दे वर्ना अपनी आधी बनवाई दाढी के साथ हफ्तों गुजारने पड़ सकते थे. अंतर्राष्ट्रीय मामलो से लेकर गुनिया धोबन के प्रेम प्रसंग तक हमारी विचारधारा अपने आप में स्कूल आफ थाट है,खुद के सिवाय ढाबे पर हाल में पदस्थापित छोटू वेटर और तेजा बा को इस पर पूरा यकीन था.तेजा बा की दूकान जो अपने भौतिक रूप में फुटपाथ पर रखी एक कुर्सी मात्र थी,परन्तु यह वह कुर्सी थी जो प्रशासन और नगरपालिका के अतिक्रमण हटाओ अभियान का केंद्र बिंदु होती थी. पिछले पचीस बरसो से न जाने कितनी इमारते प्रशासन के आगे अदृश्य होकर सरकारी जमीन पर खड़ी हो चुकी थी.और जब ऐसी इमारतो में हिस्सेदारी प्राप्त करने से वंचित लोकतंत्र के कुछ प्रहरी इस अन्याय के विरुद्ध अन्य आय प्राप्त करने के उद्देश्य से सरकार को हिलाने बदलने की धमकी देते तो चुस्त प्रशासन 'तुम्ही से शुरू तुम्ही पे जिंदगानी ख़तम करेंगे...'की तर्ज पर तेजा बा की कुर्सी से अतिक्रमण हटाने की शुरुआत कर देता.अगले दिन अखबार की सुर्खियों में तेजा बा होते,उन्हें भू माफिया,अतिक्रमी और हैबिचुल आफेंडर जैसे खिताबो से नवाजा जाता था.तेजा बा अगले दिन अपनी कुर्सी ठीक उसी जगह लगा देते थे.तेजा बा दिल से दाढी बनाते थे क्यों की उन्हें आँखों से कुछ ख़ास दिखाई नहीं देता था.अपने गुप्त कालीन उस्तरे से वे दाढी के बालो के लिए किसी युद्ध सा दृश्य उत्पन्न कर देते और चमड़ी की अगली परत को जिसम की सतह पे ला खडा करते.दाढी बनाते समय तेजा बा अपने रियासत कालीन जीवन और अपने हुनर जिसका महत्त्व समझने वाले अब इस दुनिया में नहीं रहे है, का ओज पूर्ण वर्णन करते थे.</span></div><div class="date-posts"><div class="post-outer"><div class="post hentry" style="margin-bottom: 25px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; min-height: 0px; position: relative;"><div class="post-body entry-content" style="font-size: 13px; line-height: 1.4; position: relative; width: 490px;"><span style="font-size: 17px;"><br />
मैं नौकरी लगने के करीब तीन वर्षो बाद अपने गृह जिले में पदस्थापन पा कर काफी खुश था.जिले के हाकिम ने अतिक्रमण हटाने के अभियान चलाने के निर्देश दिए थे.अल सुबह सारा लवाजमा बुलडोजरों के साथ तेजा बा की दुकान के आगे इकठा हो चुका था.तेजा बा आधी हजामत बनवाये एक शख्श को कुर्सी से उठा रहे थे जिसने अनजाने में तेजा बा की पत्नी की एक मात्र निशानी ,काच का अपमान कर दिया था.प्रशासन के लवाजमे को सामने देख तेजा बा ने खम्भे से बंधी कुर्सी की जंजीर खोल दी थी.मैं अपनी सरकारी गाडी से उतरा.सब कारिंदे मेरे इशारे का इन्तजार कर रहे थे कि अभियान आरम्भ किया जाए.मुझको तेजा बा की ओर बढ़ते देख दो कर्मचारी कुर्सी को उठाने लगे. मैंने उन्हें कुर्सी को नीचे रखने को कहा फिर नक्शे को उसी कुर्सी पर फैला दिया,और माप जोख कर बुलडोजर को हाल में बनी एक शानदार ईमारत की और बढ़ने का इशारा किया जो सरकारी जमीन पर खड़ी थी.थोडी देर बाद ईमारत की दीवारे जमीन पर आने लगी. और अब मेरे मोबाईल पर काल आरही थी, ' कालिंग....मंत्रीजी...!<br />
'</span></div></div></div></div>prakash pakhihttp://www.blogger.com/profile/02837166018856378026noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1603006818832014348.post-10638959789624794382010-11-18T07:18:00.001+05:302010-11-18T07:18:00.514+05:30मेरी पहली अभिव्यक्ति....बकरा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSDwnpwffmhT429foXrI8I44MFioS6EbKAEpJCxvgvkzbXhu2ts" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSDwnpwffmhT429foXrI8I44MFioS6EbKAEpJCxvgvkzbXhu2ts" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16px;"></span></div><div class="post-header" style="font-size: 11px; line-height: 1.6; margin-bottom: 1.5em; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div class="post-header-line-1"></div></div><div class="post-body entry-content" style="font-size: 13px; line-height: 1.4; position: relative; width: 490px;"><span style="font-size: 17px;">काफ़ी दिनों से इस उधेड़ बुन में था की हिन्दी में ब्लॉग कैसे लिखा जाय ?खैर, संजय ने समस्या सुलझा दी .नतीजे में एक और ब्लॉग आत्मा आपके सामने है।</span><br />
<span style="font-size: 17px;">आज कुछ मल्टी लेवल मार्केटिंग के बन्दे मेरे पास आए.देश के लाखो बिना मेहनत के रातोरात करोड़पति बनने का सपना देखने वाले एलीटक्लब में मैं भी चार बार शामिल हो चुका हूँ .और हर बार मैंने अपनी मेहनत की कमाई को बिना किसी मेहनत गवाया है.अलबत्ता मैं यह तो नही बता सकता की मैंने गीता के सहज योग की प्रेरणा अथवा अंतर्मन के लालच की पराकाष्ठा ,किस वजह से उनको धैर्य से सुना .पर उन्होंने जो कुछ भी सफलता की सीढ़ी मेरे सामने चित्रित की मैं उसे आपके सामने रखना चाहता हूँ ।</span><br />
<span style="font-size: 17px;">सन्क्षेप में बताया जायतो करोड़पति बनने अथवा लिमोसिन खरीदने अथवा पाम बीच आइलैंड पर घर खरीदने का एक सबसे सरल तरीका है ,और वे लोग किसी ईशवरीय प्रेरणा से केवल आप जैसे लोगो के उद्धार के लिए निस्वार्थ भावना से आपके पास आए है .आपको इसके लिए केवल अपनी मेहनत की कमाई वह छोटा सा हिस्सा जिसके बिना आपको अपने मासिक राशन को कुछ और समय के लिए उधार लाना भर पड़ेगा ।</span><br />
<span style="font-size: 17px;">एक बार इस महान त्याग के बाद आप इस के मेंबर बन जायेगे जिनको वे बकरा कहते है .बस एक बार बकरा बनने के बाद आप को अपने जैसे तीन और लोगो को बकरा बनाना होगा , उसके बाद आप कुत्ते बन जायेगे .यह आपकी सफलता की पहली सीढ़ी होगी .बाद में जब तीन कुत्ते आपके दाई ओर तथा तीन बाई ओर हो जायेगे तो आप कमीने बन जायेगे .इसी तरह से आप कमीनो को जोड़ कर नीच तथा कई नीचो को जोड़कर नराधम बन जायेगे ।</span><br />
<span style="font-size: 17px;">तो साथियो , ये है सफलता का शोर्टकट .इसको गैस पेपर या वन वीक सीरिज भी कहते है।</span><br />
<span class=""><span style="font-size: 17px;">तो अब आप मुझे पाम बीच पर कब बुला रहे हो ।</span></span><br />
<span class=""><span style="font-size: 17px;">आपका अपना ,आपके जैसा .................</span></span><br />
<span class=""><span style="font-size: 17px;"><strong>बकरा</strong> .</span></span></div>prakash pakhihttp://www.blogger.com/profile/02837166018856378026noreply@blogger.com0